पिता कानून की शिक्षा प्राप्त करके घर आये पुत्र को बताता है कि उसने उसका विवाह एक निर्धन परिवार की अशिक्षित कन्या सुशीला से तय कर दिया है। पिता-पुत्र में इस विषय पर होनेवाली वार्ता में तय होता है कि दोनों ही एक दूसरे को नहीं पहचाने। पिता पुत्र को उसकी मर्ज़ी से शादी करने जाने देता है परंतु प्रण करता है कि पुत्र से अपने सम्बन्ध तोड़कर भी उस कन्या को पुत्रवधू बनाकर अपने घर अवश्य लायेगा ताकि निर्धन परिवार का सम्मान बना रहे। इस तकरार को कन्या की बैठक में बैठी हुई विधवा माँ धैर्य से सुनती है। घर छोड़कर जाते भावी दामाद को बताती है कि उसे रोकेगी नहीं, पर अब माँ-बेटी के लिये आत्मोत्सर्ग करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रहता है।
दो दिल टूटें या दो जानें जायें? रमेश विवाह की सम्मति देता है। विदा होकर लौटती हुई नौका तूफ़ान में फंस जाती है। तूफ़ान गुज़रने के बाद टूटी नौका के किनारे रमेश केवल एक ही व्यक्ति को जीवित पाता है। नव-विवाहिता को सहारा देकर कोलकाता आता है और अपने नये घर को पत्नी की रुचि व आवश्यकता के अनुसार सजाना आरम्भ करता है।
"यह तो अजीब बात है, कभी कहते हो सुशीला और अब हेम, मैं कमला, आपकी इस्त्री।"
"ग़लती से सच बात कह दी थी। मैं इस्त्री ही हूँ। मेरे छूने से आपको झटका लग जाता है।"
रमेश को पता लगता है कि यह स्त्री कमला उसकी विवाहिता सुशीला नहीं है। निश्चित हो जाता है कि रमेश के पिता और पत्नी दोनों ही उस दुर्घटना में स्वर्गवासी हुए हैं। कमला को हॉस्टल भेजकर रमेश समाचार-पत्र में उसकी कुशलता का विज्ञापन अपने पते के साथ छपवाता है। साथ ही अपनी प्रेमिका हेमनलिनी से मिलकर कुछ आवश्यक बातें बाद में बताने को कहकर विवाह के लिये कुछ दिन रुकने का आश्वासन लेता है।
"मैं आपसे एक बात कहूँ।"
"कहो।"
"मुझे पता है लड़कियों को पसन्द-नापसन्द करने का कोई हक़ नहीं। आप लेकिन मुझे बहुत पसन्द हो।"
कहानी कुछ इस प्रकार उलझती है कि हेमनलिनी से विवाह की बात झटककर रमेश को कमला के साथ कोलकाता छोड़कर काशी जाना पड़ता है।
"कुछ तो चाहिये होगा तुम्हें? बोलो क्या चाहिये।"
"आप मुझे कहीं और तो नहीं भेज देंगे।"
"नहीं भेजूंगा।"
एक दिन संयोग से कमला को उसी समाचार की प्रति मिल जाती है जिसमें उसकी गुमशुदगी का विज्ञापन छपा था। वह रमेश को पत्र लिखकर गृहत्याग करती है।
"एक दिन नदी में डूबने वाली थी, पता नहीं कैसे आपके चरणों में आ गयी ... अब उसी नदी में वापस जा रही हूँ।"
"इतनी सुन्दर पत्नी थी तुम्हारी। पति-पत्नी का रिश्ता भी तुमने नहीं निभाया, इसी दुःख में ..."
उधर हेमनलिनी का परिचय डॉ. नलिन से इतना गहराता है कि दोनों के विवाह की बात चलती है, मगर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था।
"वापस आने के लिये चले जाना पड़ता है, वे चले नहीं गये थे।"
"चले नहीं गये थे, तो कहाँ गये थे?"
"वे खो गये थे, और हम सबने सोच लिया कि वो हमें छोड़कर चले गये और कोई खबर नहीं दी।"
हेमनलिनी को समझ आता है कि वह रमेश को छोड़कर किसी अन्य से विवाह नहीं कर सकती है। डॉ नलिन से शायद अपनी बात स्पष्ट न कह पाये सो एक पत्र में सब लिखकर उनकी माँ के लिये लेकर जाती है।
"नलिन की माँ हूँ, इसीलिये सोच लिया कि पढी-लिखी हूँ?"
"चोट को अपने दिल में कोई पालकर रखेगा, दर्द तो उसे सहना पड़ेगा। ... प्रतीक्षा ही मेरी ज़िन्दगी है, उम्मीद करती हूँ कि एक न एक दिन मेरी भी नाव किनारे लगेगी।"
नलिन अपनी माँ के दुःख को समझता है।
"रो मत माँ। माँ खाना दो भूख लगी है।"
"तुम्हें अपने खोये हुये पति की सौगन्ध, झूठ मत कहना।"
"भगवान जो करते हैं, अच्छे के लिये करते हैं"
"तुम्हें तो मालूम है मैं भगवान को नहीं मानता"
"आज अगर आपके पैर छूना चाहूँ तो आप मना तो नहीं करेंगे।"
"नहीं करूंगा करूंगा। तुम्हें बुखार है उठना मत। ... चाहो तो खत लिख सकती हो डरो मत ग़लतियाँ नहीं निकालूंगा

रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कथा "नौकाडूबी" पर आधारित इस फ़िल्म का निर्देशन रितुपर्णो घोष ने किया है, सुभाष घई के लिये। मुख्य भूमिकायें राइमा सेन (हेमनलिनी), रिया सेन (कमला), प्रसेनजित चटर्जी (डॉ. नलिन), और जिषु सेनगुप्ता (रमेश) ने निभाई हैं। कहानी की खूबसूरती यही है कि शिक्षित और निरक्षर, आस्तिक और नास्तिक, इसका हर चरित्र सुलझा हुआ और परिपक्व दिखता है। अपनी-अपनी चोटों को सहते हुए, ये सज्जन अपनी स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा करते हुए भी दूसरों को उनका समुचित देने को तैयार बैठे हैं।
संगीत: राजा नारायण देव व संजय दास का; गायन: श्रेया घोषाल, मधुश्री, सुदेष्णा चटर्जी, और हरिहरन; गीत गुलज़ार के हैं। सुखांत कहानी अपने सारे उतार चढ़ाव के बावजूद कहीं बोझिल होती नहीं लगती। मेरा सुझाव: अवश्य देखिये।
"आओ! ... जाओ उधर जाओ। वह राह देख रही है।"
अद्भुत कहानी, रविंद्रनाथ की कहानियों पर बनी फिल्में और भी खूबसूरत लगने लगती हैं। आपका हृदय से धन्यवाद
जवाब देंहटाएंटैगोर को जानना हमेशा से अद्भुत रहा है.आपने इस कहानी के माध्यम से हम तक और उनकी एक कृति परिचित कराई !
जवाब देंहटाएंnice story - not seen the movie - but the way you retold it - it was as good as having seen it, Thanks
जवाब देंहटाएंदेखने के लिए प्रेरित करता पोस्ट काफी प्रभावी बन पड़ा है. आभार.
जवाब देंहटाएंये पोस्ट काफी पहले देखी थी आज शांत दिमाग से पढ़ी :)
जवाब देंहटाएंआपकी फिल्म समीक्षा पढ़ कर फिल्म देखने की इच्छा स्वतः ही प्रबल हो जाती है
दीये की लौ की भाँति
जवाब देंहटाएंकरें हर मुसीबत का सामना
खुश रहकर खुशी बिखेरें
यही है मेरी शुभकामना।
पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
जवाब देंहटाएं***************************************************
"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
बेहतरीन प्रस्तुति .पढने को उकसाती ,देखने को ललचाती .दिवाली आपको आपके गिर्द सभी अपनों को मुबारक .
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट जानकारी के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंआपको तथा आपके परिवार को दिवाली की शुभ कामनाएं!!!!
ab to dekhini hi padegi .aapki samalochna ne ek jigyasa paida kerdi hai man me ,badhai
जवाब देंहटाएंआपको शक्रिया बताने ले लिये
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंक्या बात है । आपेक पोस्ट ने बहुत ही भाव विभोर कर दिया । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है ।
जवाब देंहटाएंGreat Post.
जवाब देंहटाएंआपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट 'खुशवंत सिंह' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंachchi prastuti.
जवाब देंहटाएंbehtarin post ...!
जवाब देंहटाएंmere post par aapka hardik swaagat hai
bndhur aap ne meri rchna "stri "ko sneh prdan kiya kripya mera hardik aabhar swikar kren
जवाब देंहटाएंdr.ved vyathit
dr.vedvyathit@gmail.com
बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआप को सपरिवार होली की शुभ कामनायें .............
"आपका सवाई "
अच्छी लगी पोस्ट ..........
जवाब देंहटाएंinteresting...
जवाब देंहटाएंBahut hi Sundar prastuti. Mere post par aapka intazar rahega. Dhanyavad.
जवाब देंहटाएंचूक गए उस वक्त। अब डीवीडी का ही सहारा है। पहले से भी इच्छुक था। आपकी सिफारिश ने इसे और बलवती बना दिया है।
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं"चोट को अपने दिल में कोई पालकर रखेगा, दर्द तो उसे सहना पड़ेगा। ... प्रतीक्षा ही मेरी ज़िन्दगी है, उम्मीद करती हूँ कि एक न एक दिन मेरी भी नाव किनारे लगेगी।"
जवाब देंहटाएं..
स्मार्ट इंडियन जी ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..गुरुदेव रवीन्द्र नाथ जी के लेख और कविताओं की बात ही निराली ही ..यदि कोई कहानी या फिल्म उस को छू भी ले क्यों न मन में घर कर जाए ..
आप का आभार ..अपना स्नेह व् समर्थन दें ..
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण